ताबीर जो मिल जाती तो एक ख्वाब बहुत था, जो शख्स गँवा बैठे है नायाब बहुत था, मै कैसे बचा लेता भला कश्ती-ए-दिल को, दरिया-ए-मुहब्बत मे सैलाब बहुत था।
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