अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे,
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे,
वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे,
कि उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे।
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे,
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे,
वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे,
कि उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे।
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